Sandhi ki Paribhasha- भेद और उदाहरण सहित, Sandhi Kise Kahate Hain

Sandhi ki Paribhasha: हमारी हिंदी भाषा में संधि के द्वारा शब्दों को लिखने की परम्परा कम है। लेकिन संस्कृत में संधि के बिना कोई काम नहीं चलता। संस्कृत व्याकरण की परम्परा बहुत पुरानी और समृद्ध है। भाषा को अच्छी तरह जानने के लिए व्याकरण में संधि को भी विस्तार से पढ़ना आवश्यक है। संधि नियमों के अध्ययन से शब्दों के सही निर्माण और उनका सही प्रयोग समझ में आता है। हिन्दी शब्दों के निर्माण में भी संधि महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। संधि के बिना शब्दों का मिलन, विभक्ति, कारक और शब्द विन्यास अधूरा माना जाता है। इसलिए भाषा की सही संरचना के लिए संधि का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक है।

Sandhi ki Paribhasha

Sandhi ki Paribhasha- संधि की परिभाषा

संधि संस्कृत भाषा का शब्द है, संधि (सम् + धि) शब्द का अर्थ है ‘मेल’ या ‘जोड़’। अतः दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है।

उदाहरण के लिए-

सम् + तोष = संतोष,

देव + इंद्र = देवेंद्र,

भानु + उदय = भानूदय।

संधि की विभिन्न परिभाषाएं- Sandhi ki Paribhasha

  1. पास-पास स्थित पदों के समीप विद्यमान वर्णों के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं।
  2. जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं।
  3. जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं तब जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं।

संधि विच्छेद: संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है।

Sandhi ke Udaharan- संधि के उदाहरण

मही + इंद्र = महींद्र,

सत् + जन = सज्जन,

देव + इंद्र = देवेंद्र।

हिमालय = हिम + आलय,

सत् + आनंद =सदानंद,

यथा + अवसर = यथावसर,

Sandhi ke Bhed- संधि के भेद

हिंदी व्याकरण में संधि के भेद तीन प्रकार के हैं- (i) स्वर संधि, (ii) व्यंजन संधि, और (iii) विसर्ग संधि।

1. स्वर संधिमुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र (इ+इ=ई)
2. व्यंजन संधिसत्+जन = सज्जन (त्+ज=ज्ज)
3. विसर्ग संधिनि:+अक्षर = निरक्षर (अ+:+अ=र)

स्वर संधि- Swar Sandhi

जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तब जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। बाकी के अक्षर व्यंजन होते हैं। स्वर संधि के नियम बहुत स्पष्ट और सरल होते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं, तब उनमें से एक स्वर का प्रभाव दूसरे स्वर पर पड़ता है और एक नया स्वर बन जाता है। इससे शब्द उच्चारण में सुगमता आती है। उदाहरण के लिए, ‘राम’ + ‘ईश्वर’ = ‘रामेश्वर’। ऐसे संधि के नियम भाषा को सहज और व्याकरणिक रूप से सुसंगठित बनाते हैं। इस प्रकार का मेल शब्दों को सुंदर और सहज बनाता है। स्वर संधि हिंदी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

स्वर संधि के उदाहरण- Swar Sandhi ke Udaharan

  • वसुर+अरि = सुरारि (अ+अ = आ)
  • विद्या+आलय = विद्यालय (आ+आ = आ)
  • मुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र (इ+इ = ई)
  • श्री+ईश = श्रीश ( ई+ई+ = ई)
  • गुरु+उपदेश = गुरुपदेश (उ+उ = ऊ)

Types of Swar Sandhi स्वर संधि के प्रकार

हिन्दी में स्वर संधि के पाँच प्रकार के भेद होते हैं- (i) दीर्घ संधि, (ii) गुण संधि, (iii) वृद्धि संधि, (iv) यण संधि, और (v) अयादि संधि।

दीर्घ संधिअधि + अंश = अधिकांश (अ+अ = आ)
गुण संधिउप + इंद्र = उपेंद्र (अ+इ = ए)
वृद्धि संधिएक + एक = एकैक (अ+ए = ऐ)
यण संधिअति + अन्त = अत्यन्त (इ+अ = य)
अयादि संधिशे + अन = शयन (ए+अ = अय)

दीर्घ संधि- Dirgha Sandhi

यदि दो सजातीय स्वर आस-पास आए, तो दोनों के मेल से सजातीय दीर्घ स्वर बन जाता है, जिसे दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहा जाता है। दीर्घ संधि के नियम हिंदी और संस्कृत दोनों भाषाओं में समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। यह संधि शब्दों को सहजता से जोड़ने में मदद करती है और उच्चारण को सरल बनाती है। उदाहरण स्वरूप, ‘राम’ + ‘आलय’ = ‘रामालय’। दीर्घ संधि से भाषा में लयात्मकता और स्पष्टता आती है। यह व्याकरणिक शुद्धता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

  • सूत्र– अक: सवर्ण दीर्घ:

अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसके समान वर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। जब ( अ, आ ) के साथ (अ, आ ) हो तो ‘आ‘ बनता है , जब ( इ , ई ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ई‘ बनता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ऊ‘ बनता है।

Also Read- सर्वनाम किसे कहते हैं

दीर्घ संधि के उदाहरण- Dirgha Sandhi ke Udaharan

  • धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
  • रवि + इंद्र = रविन्द्र
  • मुनि +इंद्र = मुनींद्र
  • विधु + उदय = विधूदय
  • भानु + उदय = भानूदय
  • पुस्तक + आलय = पुस्तकालय

अ + अ = आ

  • अधि + अंश = अधिकांश
  • अर्ध + अंगिनी = अर्धागिनी
  • धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
  • परम + अर्थ = परमार्थ
  • परम + अणु = परमाणु
  • वीर + अंगना = वीरांगना
  • सत्य + अर्थी = सत्यार्थी
  • स्वर + अर्थी = स्वार्थी

अ + आ = आ

  • कुश + आसन = कुशासन
  • नील + आकाश = नीलाकाश
  • शुभ + आरंभ = शुभारंभ
  • सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
  • शिव + आलय = शिवालय
  • धर्म + आत्मा = धर्मात्मा

आ + अ = आ

  • कदा + अपि = कदापि
  • विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
  • रेखा + अंकित = रेखांकित
  • परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
  • दीक्षा + अंत = दीक्षांत
  • सीमा + अंत = सीमांत
  • वर्षा + अंत = वर्षांत

आ + आ = आ

  • गदा + आघात = गदाघात
  • दया + आनंद = दयानंद
  • महा + आत्मा = महात्मा
  • महा + आशय = महाशय
  • श्रद्धा + आनंद = श्रद्धानंद
  • विद्या + आलय = विद्यालय

इ + इ = ई

  • अति + इव = अतीव
  • अभि + इष्ट = अभीष्ट
  • कपि + इंद्र = कपीन्द्र
  • क्षिति + इंद = क्षितिन्द्र
  • मुनि + इंद्र = मुनींद्र

इ + ई = ई

  • कपि + ईश = कपीश
  • मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर
  • कवि + ईश = कवीश
  • गिरि + ईश = गिरीश
  • वारि + ईश = वारीश

ई + इ = ई

  • नदी + इंद्र = नदीन्द्र
  • मही + इंद्र = महींद्र
  • नारी + इंद्र = नारीन्द्र
  • नारी + इच्छा = नारीच्छा

ई + ई = ई

  • गौरी + ईश = गौरीश
  • पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश
  • लक्ष्मी + ईश = लक्ष्मीश
  • पृथ्वी + ईश्वर = पृथ्वीश्वर
  • नारी + ईश्वर = नारीश्वर

उ + उ = ऊ

  • सु + उक्ति = सूक्ति
  • भानु + उदय = भानूदय
  • गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
  • लघु + उत्तर = लघूत्तर

उ + ऊ = ऊ

  • सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
  • लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
  • धातु + ऊष्मा = धतूष्मा
  • अंबु + ऊर्मि = अबूंर्मि
  • भानु + ऊर्ध्व = भानूवर्ध्व

ऊ + उ = ऊ

  • भू + ऊर्जा = भूर्जा
  • भू + उत्सर्ग = भूत्सर्ग
  • चमू + उत्तम = चमूत्तम
  • वधू + उत्सव = वधूत्सव
  • वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
  • वधू + उपकार = वधूपकार

ऊ + ऊ = ऊ

  • भू + उर्जा = भूर्जा
  • वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
  • सरयू + ऊर्मि = सरयूर्मि

ऋ + ऋ = ऋ

  • मातृ + तृण = मातृण
  • पितृ + ऋण = पितृण

2. गुण संधि- Gun Sandhi

जब ( अ , आ ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ए‘ बनता है , जब ( अ , आ )के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ओ‘ बनता है , जब ( अ , आ ) के साथ ( ऋ ) हो तो ‘अर‘ बनता है। उसे गुण संधि कहते हैं।

सूत्र– आद्गुण:

गुण संधि के उदाहरण- Gun Sandhi ke Udaharan

  • नर + इंद्र + नरेंद्र
  • सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
  • ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
  • भारत + इंदु = भारतेन्दु
  • देव + ऋषि = देवर्षि
  • सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण

अ + इ = ए

  • उप + इंद्र = उपेंद्र
  • देव + इंद्र = देवेंद्र
  • धर्म + इंद्र = धर्मेंद्र
  • नर + इंद्र = नरेंद्र
  • पुष्प + इंद्र = पुष्पेंद्र
  • भारत + इंदु = भारतेंदु
  • राज + इंद्र = राजेंद्र

अ + ई = ए

  • कमल + ईश = कमलेश
  • गण + ईश = गणेश
  • दिन + ईश = दिनेश
  • देव + ईश = देवेश
  • नर + ईश = नरेश
  • परम + ईश्वर = परमेश्वर

आ + इ = ए

  • महा + इंद्र = महेंद्र
  • यथा + इष्ट – यथेष्ट
  • रमा + इंद्र = रमेन्द्र
  • राजा + इंद्र = राजेन्द्र

आ + ई = ए

  • उमा + ईश = उमेश
  • महा + ईश = महेश
  • महा + ईश्वर = महेश्वर
  • रमा + ईश = रमेश
  • राका + ईश = राकेश
  • राजा + ईश = राजेश
  • लंका + ईश = लंकेश

अ + उ = ओ

  • चंद्र + उदय = चंद्रोदय
  • देश + उपकार = देशोपकार
  • नर + उत्तम = नरोत्तम
  • नील + उत्पल = नीलोत्पल
  • पर + उपकार = परोपकार
  • पूर्व + उदय = पूर्वोदय
  • बंसत + उत्सव = बसंतोत्सव
  • महा + उत्सव = महोत्सव
  • रोग + उपचार = रोगोपचार
  • लोक + उक्ति = लोकोक्ति
  • लोक + उपचार = लोकोपचार

अ + ऊ = ओ

  • उच्च + ऊर्ध्व = उच्चोर्ध्व
  • जल + ऊर्मि = जलोर्मि
  • नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
  • समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
  • सूर्य + ऊर्जा = सूर्योर्जा

आ + उ = ओ

  • गंगा + उदक = गंगोदक
  • महा + उत्सव = महोत्सव
  • महा + उदधि = महोदधि
  • महा + उदय = महोदय
  • महा + उद्यम = महोद्यम
  • महा + उपकार = महोपकार

आ + ऊ = ओ

  • गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
  • दया + ऊर्मि = दयोर्मि
  • महा + ऊर्जा = महोर्जा
  • महा + ऊर्ध्व = महोर्ध्व
  • महा + ऊर्मि = महोर्मि
  • महा + ऊष्मा = महोष्मा

अ + ऋ = अर्

  • देव + ऋषि = देवर्षि
  • ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
  • सप्त + ऋषि = सप्तर्षि

3. वृद्धि संधि- Vriddhi Sandhi

जब ( अ , आ ) के साथ ( ए , ऐ ) हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब ( अ , आ ) के साथ ( ओ , औ )हो तो ‘ औ ‘ बनता है। उसे वृधि संधि कहते हैं।

सूत्र– वृद्धिरेचि’’

वृधि संधि के उदाहरण- Vriddhi Sandhi ke Udaharan

  • मत + एकता = मतैकता
  • एक + एक =एकैक
  • धन + एषणा = धनैषणा
  • सदा + एव = सदैव
  • महा + ओज = महौज

अ + ए = ऐ

  • एक + एक = एकैक
  • लोक + एषणा = लोकैषणा
  • वित + एषणा = वितैषणा

अ + ऐ = ऐ

  • नव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य
  • भाव + ऐक्य = भवैक्य
  • मत + ऐक्य = मतैक्य

4. यण संधि- Yan Sandhi

जब ( इ , ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है।

सूत्र– एकोयणचि

यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं-

  • य से पूर्व आधा व्यंजन
  • व् से पूर्व आधा व्यंजन
  • त्र युक्त शब्द

यण स्वर संधि में एक शर्त भी दी गयी है कि य और त्र में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व् सार्थक स्वर को + के बाद लिखें। उसे यण संधि कहते हैं।

यण संधि के उदाहरण- Yan Sandhi ke Udaharan

  • इति + आदि = इत्यादि
  • परी + आवरण = पर्यावरण
  • अनु + अय = अन्वय
  • सु + आगत = स्वागत
  • अभी + आगत = अभ्यागत

य से पूर्व आधा व्यंजन (इ / ई + असमान स्वर = य)

  • अति + अधिक = अत्यधिक
  • अति + अन्त = अत्यन्त
  • अति + अल्प = अत्यल्प
  • यदि + अपि = यद्यपि

5. अयादि संधि- Ayadi Sandhi

जब ( ए , ऐ , ओ , औ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ ए – अय ‘ में , ‘ ऐ – आय ‘ में , ‘ ओ – अव ‘ में, ‘ औ – आव ‘ ण जाता है। य , व् से पहले व्यंजन पर अ , आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। उसे अयादि संधि कहते हैं।

सूत्र– एचोऽयवायाव:

अयादि संधि के उदाहरण- Ayadi Sandhi ke Udaharan

  • ने + अन = नयन
  • नौ + इक = नाविक
  • भो + अन = भवन
  • पो + इत्र = पवित्र
  • भौ + उक = भावुक

ए + अ = अय

  • शे + अन = शयन
  • ने + अन = नयन
  • चे + अन = चयन

व्यंजन संधि- Vyanjan Sandhi

जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।

व्यंजन संधि के उदाहरण- Vyanjan Sandhi ke Udaharan

  • जगत्+नाथ = जगन्नाथ (त्+न = न्न)
  • सत्+जन = सज्जन (त्+ज = ज्ज)
  • उत्+हार = उद्धार (त्+ह =द्ध)
  • सत्+धर्म = सद्धर्म (त्+ध =द्ध)
  • आ+छादन = आच्छादन (आ+छा = च्छा)

व्यंजन संधि के नियम- Rules of Vyanjan Sandhi

नियम (1)– जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् , और प् को ब् में बदल दिया जाता है अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी वो हलन्त वर्ण में लग जाएगी लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है तो वे हलन्त ही रहेंगे। उदाहरण-

क् के ग् में बदलने के उदाहरण

  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • दिक् + गज = दिग्गज
  • वाक् +ईश = वागीश

च् के ज् में बदलने के उदाहरण

  • अच् +अन्त = अजन्त
  • अच् + आदि =अजादी

ट् के ड् में बदलन के उदाहरण

  • षट् + आनन = षडानन
  • षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
  • षड्दर्शन = षट् + दर्शन
  • षड्विकार = षट् + विकार
  • षडंग = षट् + अंग

त् के द् में बदलने के उदाहरण:

  • तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
  • सदाशय = सत् + आशय
  • तदनन्तर = तत् + अनन्तर
  • उद्घाटन = उत् + घाटन

नियम (2)– यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण ( ङ,ञ ज, ण, न, म) के साथ हो तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है। उदाहरण-

क् के ङ् में बदलने के उदाहरण:

  • वाक् + मय = वाङ्मय
  • दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
  • प्राङ्मुख = प्राक् + मुख

ट् के ण् में बदलने के उदाहरण:

  • षट् + मास = षण्मास
  • षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
  • षण्मुख = षट् + मुख

नियम (3)– जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘ म ‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा। उदाहरण:

म् + क ख ग घ ङ के उदाहरण:

  • सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
  • सम् + ख्या = संख्या
  • सम् + गम = संगम
  • शंकर = शम् + कर

म् + च, छ, ज, झ, ञ के उदाहरण:

  • सम् + चय = संचय
  • किम् + चित् = किंचित
  • सम् + जीवन = संजीवन

नियम (4)– त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् बन जाता है। म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है।उदाहरण:-

म + य , र , ल , व् , श , ष , स , ह के उदाहरण:-

  • सम् + रचना = संरचना
  • सम् + लग्न = संलग्न
  • सम् + वत् = संवत्
  • सम् + शय = संशय

त् + च , ज , झ , ट , ड , ल के उदाहरण:

  • उत् + चारण = उच्चारण
  • सत् + जन = सज्जन
  • उत् + झटिका = उज्झटिका
  • तत् + टीका =तट्टीका
  • उत् + डयन = उड्डयन

नियम (5)– जब त् का मिलन अगर श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल दिया जाता है। जब त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है। उदाहरण:

  • उत् + चारण = उच्चारण
  • शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
  • उत् + छिन्न = उच्छिन्न

त् + श् के उदाहरण:

  • उत् + श्वास = उच्छ्वास
  • उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
  • सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

नियम (6)– जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल दिया जाता है। त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है। उदाहरण:

  • सत् + जन = सज्जन
  • जगत् + जीवन = जगज्जीवन
  • वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार

त् + ह के उदाहरण:

  • उत् + हार = उद्धार
  • उत् + हरण = उद्धरण
  • तत् + हित = तद्धित

नियम (7)– स्वर के बाद अगर छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है। जब त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ की मिलन होने पर त् या द् की जगह पर‘ड्’बन जाता है। उदाहरण:

  • तत् + टीका = तट्टीका
  • वृहत् + टीका = वृहट्टीका
  • भवत् + डमरू = भवड्डमरू

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, + छ के उदाहरण

  • स्व + छंद = स्वच्छंद
  • आ + छादन =आच्छादन
  • संधि + छेद = संधिच्छेद
  • अनु + छेद =अनुच्छेद

नियम (8)– अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है। उदाहरण:

  • उत् + लास = उल्लास
  • तत् + लीन = तल्लीन
  • विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा

म् + च् , क, त, ब , प के उदाहरण

  • किम् + चित = किंचित
  • किम् + कर = किंकर
  • सम् +कल्प = संकल्प
  • सम् + चय = संचयम
  • सम +तोष = संतोष
  • सम् + बंध = संबंध
  • सम् + पूर्ण = संपूर्ण

नियम (9)– म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द् तथा ह की जगह पर ध बन जाता है। उदाहरण:

  • उत् + हार = उद्धार/उद्धार
  • उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत
  • पद् + हति = पद्धति

म् + म के उदाहरण:

  • सम् + मति = सम्मति
  • सम् + मान = सम्मान

नियम (10)– म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है। उदाहरण:

  • उत् + श्वास = उच्छ्वास
  • उत् + शृंखल = उच्छृंखल
  • शरत् + शशि = शरच्छशि

नियम (11)– ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मिलन पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ आ जाता है। उदाहरण:

  • आ + छादन = आच्छादन
  • अनु + छेद = अनुच्छेद
  • शाला + छादन = शालाच्छादन
  • स्व + छन्द = स्वच्छन्द

नियम (12)– स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष बना दिया जाता है। उदाहरण:

  • वि + सम = विषम
  • अभि + सिक्त = अभिषिक्त
  • अनु + संग = अनुषंग

भ् + स् के उदाहरण

  • अभि + सेक = अभिषेक
  • नि + सिद्ध = निषिद्ध
  • वि + सम + विषम

नियम (13)– यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर,क, ख ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है तब द की जगह पर त् बन जाता है। उदाहरण:-

  • राम + अयन = रामायण
  • परि + नाम = परिणाम
  • नार + अयन = नारायण
  • संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
  • तद् + पर = तत्पर
  • सद् + कार = सत्कार

विसर्ग संधि- Visarg Sandhi

विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।

विसर्ग संधि के उदाहरण- Visarg Sandhi ke Udaharan

  • मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
  • नि:+अक्षर = निरक्षर
  • नि: + पाप =निष्पाप
  • विसर्ग संधि के 10 नियम-

नियम (1)– विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’ बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ’और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे , पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ‘ओ‘ हो जाता है। उदाहरण:

  • मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
  • अधः + गति = अधोगति
  • मनः + बल = मनोबल
  • निः + चय = निश्चय
  • दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
  • ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
  • निः + छल = निश्छल
  • तपः + चर्या = तपश्चर्या
  • अन्तः + चेतना = अन्तश्चेतना
  • हरिः + चन्द्र = हरिश्चन्द्र
  • अन्तः + चक्षु = अन्तश्चक्षु

नियम (2)– विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता ह। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है।

  • दुः + शासन = दुश्शासन
  • यशः + शरीर = यशश्शरीर
  • निः + शुल्क = निश्शुल्क
  • निः + आहार = निराहार
  • निः + आशा = निराशा
  • निः + धन = निर्धन
  • निः + श्वास = निश्श्वास
  • चतुः + श्लोकी = चतुश्श्लोकी
  • निः + शंक = निश्शंक

नियम (3)– विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।

  • धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
  • चतुः + टीका = चतुष्टीका
  • चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
  • निः + चल = निश्चल
  • निः + छल = निश्छल
  • दुः + शासन = दुश्शासन

नियम (4)– विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।

  • निः + कलंक = निष्कलंक
  • दुः + कर = दुष्कर
  • आविः + कार = आविष्कार
  • चतुः + पथ = चतुष्पथ
  • निः + फल = निष्फल
  • निः + काम = निष्काम
  • निः + प्रयोजन = निष्प्रयोजन
  • बहिः + कार = बहिष्कार
  • निः + कपट = निष्कपट
  • नमः + ते = नमस्ते
  • निः + संतान = निस्संतान
  • दुः + साहस = दुस्साहस

नियम (5)– विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा।

  • अधः + पतन = अध: पतन
  • प्रातः + काल = प्रात: काल
  • अन्त: + पुर = अन्त: पुर
  • वय: + क्रम = वय:क्रम
  • रज: + कण = रज:कण
  • तप: + पूत = तप:पूत
  • पय: + पान = पय:पान
  • अन्त: + करण = अन्त:करण
  • विसर्ग संधि के अपवाद (1)
  • भा: + कर = भास्कर
  • नम: + कार = नमस्कार
  • पुर: + कार = पुरस्कार
  • श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
  • बृह: + पति = बृहस्पति
  • पुर: + कृत = पुरस्कृत
  • तिर: + कार = तिरस्कार
  • निः + कलंक = निष्कलंक
  • चतुः + पाद = चतुष्पाद
  • निः + फल = निष्फल

नियम (6)– विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न व्यंजन हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। ध्यान रहे विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।

  • अन्त: + तल = अन्तस्तल
  • नि: + ताप = निस्ताप
  • दु: + तर = दुस्तर
  • नि: + तारण = निस्तारण
  • निः + तेज = निस्तेज
  • नम: + ते = नमस्ते
  • मन: + ताप = मनस्ताप
  • बहि: + थल = बहिस्थल
  • निः + रोग = निरोग
  • निः + रस = नीरस

नियम (7)– विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।

  • नि: + सन्देह = निस्सन्देह
  • दु: + साहस = दुस्साहस
  • नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
  • दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न
  • निस्संतान = नि: + संतान
  • दुस्साध्य = दु: + साध्य
  • मनस्संताप = मन: + संताप
  • पुनस्स्मरण = पुन: + स्मरण
  • अंतः + करण = अंतःकरण

नियम (8)– यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी।

  • नि: + रस = नीरस
  • नि: + रव = नीरव
  • नि: + रोग = नीरोग
  • दु: + राज = दूराज
  • नीरज = नि: + रज
  • नीरन्द्र = नि: + रन्द्र
  • चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
  • दूरम्य = दु: + रम्य

नियम (9)– विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।

  • अत: + एव = अतएव
  • मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
  • पय: + आदि = पयआदि
  • तत: + एव = ततएव

नियम (10)– विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।

  • मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
  • सर: + ज = सरोज
  • वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
  • यश: + धरा = यशोधरा
  • मन: + योग = मनोयोग
  • अध: + भाग = अधोभाग
  • तप: + बल = तपोबल
  • मन: + रंजन = मनोरंजन
  • मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
  • मन: + हर = मनोहर
  • तप: + भूमि = तपोभूमि
  • पुर: + हित = पुरोहित
  • यश: + दा = यशोदा
  • अध: + वस्त्र = अधोवस्त्र
  • विसर्ग संधि के अपवाद (2)
  • पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
  • पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
  • पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
  • पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
  • अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
  • अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
  • अन्त: + यामी = अन्तर्यामी

संधि से अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-उत्तर

1. संधि किसे कहते हैं?

दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से होने वाले परिवर्तन को ‘Sandhi’ कहते हैं। जैसे-
गिरि + ईश = गिरीश,
सत् + जन = सज्जन।

2. Sandhi कितने प्रकार की होती हैं?

वर्णों के आधार पर संधि के तीन प्रकार की होती हैं-
(i) स्वर संधि,
(ii) व्यंजन संधि,
(iii) विसर्ग संधि।

3. स्वर Sandhi के सभी भेद लिखिए?

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. दीर्घ स्वर संधि,
2. गुण स्वर संधि,
3. वृद्धि स्वर संधि,
4. यण स्वर संधि,
5. अयादि स्वर संधि।

4. व्यंजन Sandhi किसे कहते हैं? उपयुक्त उदाहरण के साथ बताइए।

संधि के समय जब पहले वर्ण या शब्द के अंत में किसी व्यंजन का प्रयोग हो तो, वह ‘व्यंजन संधि’ कहलाती है। उदाहरण के लिए-

दिक् + विजय = दिग्विजय,
जगत् + अम्बा = जगदम्वा,
वाक् + जाल = वाग्जाल,
जगत् + गुरू = जगद्गुरू,
वाक् + ईश = वागीश,
जगत् + आधार = जगदाधार।

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